सावन महीने की पूर्णिमा को स्कंदपुराण और भविष्यपुराण में पर्व कहा गया है। इस बार ये पूर्णिमा दो दिन है। यानी 11 को इस तिथि में श्राद्ध और पूजा कर सकते हैं। 12 अगस्त को स्नान करना शुभ रहेगा। इस तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। तीर्थ या पवित्र नदियों के जल से स्नान किया जाता है। इस दिन किए गए दान और उपवास से अक्षय फल मिलता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण यानी अपनी 16 कलाओं वाला होता है। इसलिए इस दिन किए गए शुभ कामों का पूरा फल मिलता है।

2023 में बनेगा गुरुवार और पूर्णिमा का संयोग अगला संयोग

इस बार पूर्णिमा तिथि पर गुरुवार का शुभ संयोग बन रहा है। इसके बाद ऐसा योग 4 मई 2023 को बनेगा। गुरुवार और पूर्णिमा तिथि से बनने वाले शुभ संयोग में किए गए कामों से सुख, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है। इस शुभ संयोग में किए गए स्नान-दान का कई गुना फल भी मिलते हैं। इससे पहले 17 मार्च को गुरुवार के दिन पूर्णिमा का योग बना था।

गंगा स्नान और पितृ पूजा का पर्व

भारतीय संस्कृति में सावन पूर्णिमा का बहुत ही महत्त्व है। इस दिन गंगाजल से नहाकर भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। इस पूर्णिमा पर ही रक्षाबंधन मनाया जाता है। सावन महीने की पूर्णिमा पर पितरों की विशेष पूजा और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। इससे पितृ तृप्त होते हैं। सौभाग्य और समृद्धि के लिए इस पर्व पर भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा और व्रत भी किया जाता है।

सौलह कलाओं वाला होता है चंद्रमा

इस पर्व पर सूर्य और चन्द्रमा के बीच 169 से 180 डिग्री का अंतर होता है। जिससे ये ग्रह आमने-सामने होते हैं और इनके बीच समसप्तक योग बनता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सौलह कलाओं से पूर्ण रहता है। इसलिए इस दिन औषधियों का सेवन करने से उम्र बढ़ती है। इस योग में किए गए कामों में सफलता मिलती है। पूर्णिमा के स्वामी खुद चंद्रमा हैं। ज्योतिष के मुताबिक चंद्रमा का असर हमारे मन पर पड़ता है। इसलिए इस तिथि पर मानसिक उथल-पुथल जरूर होती है। गुरुवार और पूर्णिमा तिथि से बनने वाले शुभ संयोग में किए गए कामों से सुख, समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।