आत्मा ही आनन्द का स्वरूप है। किसी भी सुखद अनुभूति में तुम आंखे मूंद लेते हो। जैसे जब किसी फूल को सूंघते हो, कोई स्वादिष्ट खाना चखते हो या किसी वस्तु को स्पर्श करते हो। दुख का केवल यही अर्थ है कि तुम अपरिवर्तनशील आत्मा पर केन्द्रित होने के बदले विषयवस्तु में फंसे हो, जो परिवर्तनशील है। सभी इन्द्रियां केवल डाइविंग बोर्ड की भांति हैं जो तुम्हें वापस आत्मा तक पहुंचाती हैं। स-खा का अर्थ है वह ही इन्द्रिय है। सखा वह है जो तुम्हारी इन्द्रिय बन गया है, जो तुम्हारी इन्द्रिय ही है। यदि तुम मेरी इन्द्रिय हो, इसका मतलब तुम्हारे द्वारा मुझे ज्ञान मिलता है, तुम मेरी छठी इन्द्रिय हो। जैसे मैं अपने मन पर विश्वास करता हूं, वैसे ही मैं तुम पर विश्वास करता हूं। एक मित्र केवल इन्द्रिय-विषय हो सकता है, परन्तु सखा स्वयं इन्द्रिय बन जाता है।  
सखा वह साथ है जो सुख और दु:ख, दोनों अनुभवों में साथ रहता है। सखा वह है जो तुम्हें आत्म स्थित करता है, यदि तुम किसी  विषय वस्तु में फंसे हो। जो ज्ञान  तुम्हें वापस आत्मा की ओर लाता है, वही सखा है। ज्ञान तुम्हारा साथी है और गुरु केवल ज्ञान के प्रतिरूप हैं। सखा का अर्थ है, वह मेरी इन्द्रियां हैं। मैं संसार को उसी ज्ञान के द्वारा, उनके माध्यम से देखता हूं। यदि तुम्हारी सोच देवी है, तो तुम समस्त संसार को दिव्य दृष्टि से देखोगे। कुछ वर्षो में तुम्हारा मस्तक मिट्टी में होगा, जीते जी तो अपना सर कीचड़ से मत भरो। मेरा पीछा न करो। वास्तव में तुम मेरा पीछा कर भी नहीं सकते, क्योंकि मैं तो तुम्हारे पीछे हूं, तुमको आगे ठेलने के लिए। तुम्हें सब-कुछ पीछे छोड़ देना है और आगे बढ़ना है। सब कुछ तुम्हारे सभी अनुभव, तुम्हारे नाते-रिश्ते-भूत काल के हिस्से हैं। सब-कुछ छोड़ दो। अपनी स्मृतियों के सम्पूर्ण संसार को पीछे छोड़ दो। मुझको भी। आगे बढ़ो और मुक्त हो जाओ। कुछ और खोजना बन्द करो- तब तुम मुक्त होगे और तुममें अनुकम्पा उभरेगी।