आचार्य चाणक्य की नीति के अनुसार यदि व्यक्ति को तरक्की करना हो, परेशानियों से बचना हो और सुखपूर्वक जीवन यापन करना हो तो उसे कुछ जगहों पर नहीं रहना चाहिए।
यस्मिन देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बांधव:।

न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत्।- चाणक्य नीति

1. मान-सम्मान : आप जिस जगह पर रहते हैं वहां यदि आपको मान सम्मान न मिले बल्कि अनादर हो तो ऐसी जगह पर रहने का कोई मतलब नहीं। तरक्की की पहली शर्त ही है उचित सम्मान। छवि खराब है या छवि खराब करने वाले लोगों के बीच रह रहे हैं तो आप सफल नहीं हो सकते। 
2. बंधु बांधव : यदि आपके घर के आसपास आपका कोई बंधु-बांधव अर्थात भाई, रिश्तेदार, मित्र या समाजजन नहीं रहते हैं तो उस स्थान को तुरंत छोड़ देना चाहिए। क्योंकि जरूत पड़ने पर कोई आपके साथ खड़ा नहीं होगा और उन्हीं से जीवन में खुशियां भी रहती है भले भी उनसे झगड़े होते रहें।

3. रोजगार : यदि आपके गांव, कस्बे या शहर में आजीविका चलाने के लिए रोजगार नहीं है या धन कमाने का कोई माध्यम नहीं है तो वहां रहने का क्या मतलब? क्योंकि जीवन तो धन से ही चलता है।
4. शिक्षा : यदि आप जहां रहते हैं वहां पाठशाला न हो या पढ़ाई-लिखाई शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता हो तो वहां रहना व्यर्थ है। शिक्षा के बगैर बच्चों का जीवन और भविष्य अंधकार में चला जाएगा।

5. गुण : जिस जगह पर स्कूली शिक्षा के अलावा सीखने लायक कुछ न हो, कोई संस्थान न हो तो उस स्थान को भी छोड़ देना चाहिए क्योंकि मानसिक और शारीरिक विकास के साथ व्यक्तित्व और गुणों का विकास भी जरूरी है। यह सभी कलाओं को सीखने से प्राप्त होता है।