सावन का महीना महादेव के भक्तों के लिए बहुत प्रिय महीना है।भारत में लगभग हर शिवालय में हर हर महादेव की गूंजे सुनाई देती है। हर जगह महादेव की महिमा का गुणगान होता है। महादेव के साथ में माता पार्वती की भी पूजा होती है। स्वयं शिव शम्भू ने कहा था की मुझे सावन का महीना अत्यंत प्रिय है।ऐसे ही एक मंदिर है जिस में महादेव की शिवलिंग की स्थापना महाबली भीमसेन ने की थी। ये मंदिर यूपी के गोंडा जिले के खरगूपुर में स्थित है। इस ऐतिहासिक मंदिर की स्थापना पांडु पुत्र भीम ने की थी। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है की यहां का शिवलिंग सबसे बड़ा माना जाता है।कहते है की भीमसेन ने सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना की थी।पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान जब भीमसेन ने बकासुर नाम के राक्षस का वध किया तो उस पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडु पुत्र भीम ने शिवलिंग की स्थापना की और भगवान शिव जी का पूजन कर प्रायश्चित किया। शिव भक्तों के लिए ये मंदिर आस्था का केंद्र बन चुका है। इस मंदिर में महादेव के दर्शन पाने के लिए सिर्फ गोंडा ही नहीं बल्कि आस पास के जगहों से भी लोग आते रहते है। सावन के महीने में शिव भक्त यहां आकर जलाभिषेक करके अपनी मन की मुराद पूरी करते है। शिव जी कृपा पाने के लिए वहां के मूल निवासी रोज दर्शन के लिए आते है। वन महीने में यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। खरगूपुर में स्थित ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर करीब 5००० वर्ष पुराना बताया जाता है। मान्यता है कि पांडु पुत्र भीम जब अपने पांचों भाइयों के साथ अज्ञातवास पर थे, तो उसी दौरान उन्होंने एक चक्र नगरी में शरण ली थी। यहां पर बकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। जो गांव के लोगों में से एक व्यक्ति को प्रतिदिन खा जाया करता था।एक दिन जब भीम को शरण देने वाले परिवार का नंबर आया तो वह खुद उस परिवार की जगह भोजन बनने के लिए बकासुर के पास गए और वहां पर युद्ध करते हुए भीम ने बकासुर का वध कर दिया।बकासुर के वध से जो पाप लगा उसी पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और भगवान भोलेनाथ का पूजा अर्चना करके अपने पाप के लिए प्रायश्चित किया। इस शिवलिंग को प्राचीन काल की बताई जाती है। हालांकि समय के साथ भगवान महादेव का यह मंदिर धीरे धीरे जर्जर हो गया l बाद में भीम द्वारा स्थापित यह शिवलिंग धीरे-धीरे जमीन में समा गया।

मकान निर्माण के लिए हो रही खुदाई में मिला शिवलिंग
कालांतर में खरगूपुर के राजा गुमान सिंह की अनुमति से यहां के निवासी पृथ्वी सिंह ने मकान निर्माण के लिए खुदाई शुरू कराई। उसी रात स्वप्न में पता चला कि नीचे सात खण्डों का शिवलिंग दबा हुआ है। इसके बाद पृथ्वी सिंह ने पूरे टीले की पुन: खुदाई कराई।जहां एक विशाल शिवलिंग उभर कर सामने आया। उसके बाद वहां के राजा पृथ्वी सिंह ने पूजा हवन करवा कर उस मंदिर की स्थापना करवाई। तभी से ये मंदिर पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सावन के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु महादेव के दर्शन के लिए आते है। सोमवार को इस मंदिर में महादेवों के भक्तों की लाइन लगी रहती है। ये मंदिर बड़ी संख्या में आस्था का केंद्र बन चुका है। इस मन्दिर में स्थापित शिवलिंग साढ़े पांच फुट ऊंचा और काले - कसौटे दुर्लभ पत्थरों से निर्मित है। मान्यता है की जो भी सच्चे मन से इस मंदिर में अपनी मुरादे लेकर आता है,उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है।

पुरातत्व विभाग ने की एशिया के सबसे बड़े शिवलिंग होने की पुष्टि
एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को माना जाता है।पुरातत्व विभाग ने भी शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग होने की पुष्टि की है। भारत में शिवलिंग के तौर पर कई शिव मंदिर बने हैं, जो कि देश-विदेश हर जगह प्रसिद्ध हैं।करीब तीन दशक पहले जिले के तत्कालीन सांसद कुंवर आनंद सिंह ने पुरातत्व विभाग को इस मंदिर के बारे में खत लिखा। पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग की जांच की , तो जांच में पाया गया कि ये शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है जो 5 हजार साल पहले महाभारत काल का है।