नरसिंहपुर  ।   मध्यप्रदेश का नरसिंहपुर देशभर में एकमात्र ऐसा जिला है, जिससे चार शंकराचार्यों का नाता है। भगवान आदिशंकराचार्य ने नर्मदा के सांकल घाट हीरापुर में साधना की थी। यह स्थान गुरुगुफा के रूप में प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आदिशंकराचार्य का मंदिर बनवाया है। ब्रह्मलीन स्वरूपानंदजी की तप स्थली परमहंसी नरसिंहपुर जिले में है। जिनके उत्तराधिकारी शिष्य शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और सदानंदजी ने भी गुरु तपस्थली में उनके साथ रहते हुए तप, साधना, धर्मशिक्षा ली है। आदि शंकराचार्य ने नरसिंहपुर जिले में नर्मदा के सांकल-ढानाघाट के बीच धूमगढ़ स्थित एक गुफा में कठिन तपस्या की थी। यहीं पर अपने गुरु गोविंदपादाचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ली थी। बताया जाता है कि नर्मदा परिक्रमा दौरान ब्रह्मलीन शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज वर्ष 1949 के करीब की थी। जिसके बाद यहां भगवान आदि शंकराचार्य और उनके गुरु की प्रतिमा स्थापित कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी नमामि देवी नर्मदे यात्रा दौरान गुरुगुफा में पूजन किया था। जबकि वर्ष 1989 में गोविंदवन में शंकराचार्य के सानिध्य में तात्कालीन उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, तात्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा ने पौधारोपण किया था। करीब पांच वर्ष पहले यहां मंदिर निर्माण कराया था।

ढाई हजार वर्ष से अधिक पुरानी गुफाः

बताया जाता है कि यह गुफा ढाई हजार वर्ष से अधिक प्राचीन हैं। जो ढाई सौ फीट लंबी व करीब 50 फीट गहरी है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता करीब डेढ़ फीट चौड़ा संकीर्ण रास्ता है। दोनों शंकराचार्यों को दी वेद-वेदांत की शिक्षाः ब्रह्मचारी अचलानंद बताते हैं कि ब्रह्मलीन शंकराचार्यजी परमहंसी में वर्ष 1950 के करीब से स्थायी रूप से तप करते रहे और फिर यहीं पर आश्रम का निर्माण हुआ। नर्मदा परिक्रमा के दौरान गुरुगुफा की खोज उन्होंने ही की थी। जब भी गुरुजी का परमहंसी में चातुर्मास रहा और लंबे समय तक यहां रहे तो उस दौरान वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद व सदानंदजी को भी वह वेद-वेदांत, न्याय मीमांसा की शिक्षा देते रहे। इस तरह परमहंसी को दोनों शंकराचार्यों की शिक्षा स्थली भी कहा जा सकता है।