प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई कर नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के खिलाफ तीखी टिप्पणी कर कहा कि यह मिशन केवल पैसा बांटने की मशीन रह गई है। पैसा कहां खर्च हो रहा इसकी न तो निगरानी की जा रही और न ही कोई हिसाब लिया जा रहा। हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर कोई काम दिखाई नहीं दे रहा है। कराया जा रहा काम केवल आंखों को धोखा देने वाला है।
टिप्पणी मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की। केंद्र के जलशक्ति मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि 2014-15 से 2021-22 के दौरान 11993.71 करोड़ विभिन्न विभागों को वितरित किए गए हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में निगरानी कमेटी गठित की गई है। प्रदेश में गंगा किनारे 13 शहरों में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। 7 शहरों में 15 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का प्रस्ताव है। 95 फीसदी सीवेज का शोधन किया जा रहा है। एनएमसीजी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम ग्रामीण एंव शहरी, नगर निगम प्रयागराज सहित कई विभागों की ओर से हलफनामे दाखिल किए गए।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई है। सरकारी कार्रवाई से कोर्ट संतुष्टि नहीं हुई। कोर्ट ने पूछा कि परियोजना पर कोई पर्यावरण इंजीनियर है या नहीं। इस पर बताया गया कि एनएमसीजी में काम कर रहे सारे अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर ही हैं। उनकी सहमति के बिना कोई भी परियोजना पास नहीं होती है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि परियोजनाओं की निगरानी कैसे करते हैं, तब इसका साफ जवाब नहीं मिला।
कोर्ट से शिकायत की गई कि कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज सहित अन्य शहरों में लगे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानक के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं। सरकारी हलफनामों से इसकी पुष्टि होती दिखाई दी। कानपुर में सारे नाले खुले हैं। वाराणसी में दो नाले खुले हैं, जिससे नालों का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है।  सेंट्रल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यही बताया गया है कि ज्यादातर एसटीपी ठीक से काम नहीं कर रही है और कुछ जो काम रहीं हैं, वो मानक के अनुसार नहीं है।